कोई जीव उतपन्न होकर जब संसार में आता है तभी से उसका शरीर अपने अनुकूल क्रियाओं को करने लगता है और सिलसिला उस जीव की मृत्यु तक निरंतर चलता रहता है।
मानव , जानवर या कोई अन्य प्राणी सोते-जागते , चलते-फिरते, उठते-बैठते उन क्रियाओं करता है जिसकी आवश्यकता उनकी शारीरिक सहजता के अनुकूल होती है।शारीरिक आवश्यकताओं की यही क्रियायें हमारे शरीर, मन और आत्मा को एक साथ जोड़ता है और हमें मजबूत और शांतिपूर्ण बनाता है और हमें स्वास्थ्य रखता है, तनाव को कम करने में मदद करता है और समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
जैसे-जैसे भाजगदौड़ भरी जीवन शैली के चलते मनुष्य प्रकृति और स्वयं का सान्निध्य खोता जाता है और शरीर की स्वाभाविक क्रियाओं को सही ढंग से नहीं कर पाता है । इसी वजह से जीवन में कई तरह के रोग जन्म लेते हैं।
आज योग के सहारे पूरा विश्व स्वस्थ जीवन की आस में है और उसकी तह में खोजबीन कर कर रहा है ।
यूँ तो योग के उत्पत्ति के बारे में स्पष्ट कुछ नही कहा जा सकता इसका प्रमुख कारण यह है कि योग की उत्पत्ति के बारे में अभी तक कोई सुव्यवस्थित अनुसन्धान अध्ययन नहीं हुआ है। लेकिन प्रमाणित रूप से कहा जा सकता है कि योग इतना पुराना है जितना की भारत का इतिहास । योग के बारे में उपलब्ध स्त्रोत पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि योग प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति का मुख्य अंग रहा है ।
योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है। भगवान शिव के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। तत्पश्चात् कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी-अपनी तरह से विस्तार किया। इसके पश्चात् महर्षि पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तार किया।
पतंजलि ने अपने 'योग-सूत्र' में बताया है कि इस तरह के 'योग-ध्यान' का एकमात्र लक्ष्य है- समाधि की प्राप्ति. मन-मस्तिष्क की शांति. बाहर से अपने भीतर तक की यात्रा करना. सूफियों ने भी ध्यान केंद्रित करने और मन-मस्तिष्क को एकाग्र करने के लिए योग को अपनाया भारत में सूफियों और योग के बीच बहुत करीबी रिश्ता रहा सूफियों ने योग की विधियों को ही नहीं अपनाया बल्कि मांसाहार और शराब का सेवन भी छोड़ दिया।
औरग़ज़ेब के भाई दारा शिकोह की भी योग और वेदांत में दिलचस्पी थी जिसकी वजह से उसके छोटे भाइयों ने उसपर धर्म-विरोधी होने का आरोप लगाया और उसे मुग़ल सिंहासन तक नहीं पहुंचने दिया। भारत में योग के साथ मुसलमानों का इतना गहरा सम्बन्ध रहा है कि आज ये कहने में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि आज हम योग का जो रूप देख रहे हैं उसे आकार देने में मुसलमानों का भी अहम योगदान रहा है।
11वीं सदी में अल-बरुनी ने पतंजलि के योग-सूत्र का अरबी में अनुवाद किया। अल-बरुनी के इस अनुवाद ने पतंजली के योग-सूत्र का पूरे विश्व में प्रचार किया. उसने पतंजली के योग-सूत्र में लोगों की रूचि भी जगाई. लेकिन ये भी एक सच है कि पतंजलि के योग-सूत्र (संस्कृत और अल-बरुनी के अरबी अनुवाद दोनों में ही) में योग का जो रूप दिखाई देता है वो इस योग से बिलकुल अलग है, जिसे हम आज योग के रूप में जानते हैं।
ये अलगाव आसनों के स्तर पर है पतंजली के 196 सूत्रों में से सिर्फ 1 सूत्र में आसनों के बारे में बताया गया है। पतंजलि के लिए योग शारीरिक क्रियाकलाप या व्यायाम से कहीं ज्यादा मन-मस्तिष्क के ध्यान और एकाग्रता की एक प्रक्रिया है सिर्फ 'हठप्रदीपिका' में कई आसनों की चर्चा की गई है।
एक प्राचीन ग्रन्थ में 84 लाख आसनों का ज़िक्र मिलता है लेकिन उनमें से सिर्फ दो ही आसनों के बारे में विस्तार से बताया गया है आगे चलकर 17वीं शताब्दी के 'हठरत्नावली' और 'योगचिन्तामणि' में आसनों की संख्या बढ़ी है और उनके बारे में विस्तार से बताया भी गया है इनसे पहले के ग्रंथों में 84 आसनों के सिर्फ नाम ही हैं जबकि बाद के ग्रंथों में लगभग 35 आसनों की विस्तार से व्याख्या की गई है।
लेकिन आज हम योग का जो रूप देख रहे हैं असल में वो 16वीं शताब्दी के फ़ारसी टेक्स्ट 'बहर-अल-हयात' से लिया गया है ये अरबी के 'हवद-अल-हयात' का अनुवाद है कहा जाता है कि 'हवद-अल-हयात' संस्कृत के 'अमृतकुंड' का अनुवाद है।
विद्वानों का मानना है कि 'बहर-अल-हयात' के लेखक सूफी शेख मोहम्मद गौथ ग्वालियरी ने उस समय के योगियों से बातचीत करके ये ग्रन्थ लिखा होगा क्योंकि इसके पहले लिखे ग्रंथों में उन आसनों का कोई ज़िक्र नहीं मिलता। उनके इस ग्रन्थ में आसनों के बारे में बड़ी ही खूबसूरती से बताया गया है इस किताब में 21 योगियों द्वारा कठिन से कठिन आसन वर्णित किए गए हैं जबकि पतंजलि के योग-सूत्र में आसनों की व्याख्या नहीं की गई है आज हम योग के जिन आसनों का अभ्यास कर रहे हैं असल में वो फारसी पांडुलिपियों की देन है और यहीं से भारत में योग का प्रारंभ होता है।
हालांकी इस्लामिक विद्वानों का कहना है कि योगा और नमाज में काफी फर्क है क्योंकि नमाज एक अल्लाह की इबादत है और योगा एक खेल। विद्वानों का स्पष्ट मत है कि नमाज अल्लाह की इबादत के लिए अता की जाती है, जबकि योगा सेहत के लिए किया जाता है और अल्लाह की इबादत ( प्रार्थना) में खेल को शामिल नहीं किया जा सकता । अगर जर्रे भर भी यह ख्याल आया तो तमाम इबादत जाया हो जायेगी।
वहीं योग के जानकार इसे इस तरह जोड़कर देखते हैं और मानते हैं कि योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'युजा' से हुई है जिसका मतलब है "एकजुटता". ठीक इसी तरह नमाज़ जिसे "सलात" कहा जाता है, इसकी उत्पत्ति हुई है अरबी शब्द 'सिला/विसाल' से, इसका भी मतलब है "एकजुटता" से ही है। नमाज के दौरान मन को शांत रखा जाता है और ध्यान लगाया जाता है योग में भी मन को शांत कर ध्यान लगाया जाता है।
नमाज से पहले 'वुजू' करना होता है, जिसमें आप अपने हाथ पांव और चेहरे को पानी से धुलते हैं जबकि योग से पहले शौच करना जरूरी होता है। योग और नमाज दोनों संकल्प से शुरू होता है नमाज़ और योग में ऊर्जा कम से कम खर्च करना और इससे ज़्यादा शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति को प्राप्त करना है।
लेकिन साइंसी विद्वानों का मानना है कि 1400 वर्ष पहले इस्लाम ने अपनी प्रार्थना में जिन क्रियाओं को अपनाया है वह स्वास्थ्य दृष्टि से बहुत अच्छी हैं। इस्लाम ने अपनी प्रार्थना में जो नियम और क्रियायें धारण की हैं वह अन्य धर्मों में की प्रार्थनाओं में की जाने वाली क्रियाओं और नियमों से वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बिलकुल अलग हैं इस्लामिक प्रार्थनाएं स्वास्थ्य लाभ के लिए उत्कृष्ट हैं जिस तरह इसको एक दिन में पांच बार फर्ज किया गया है यह इसे विशेषतर बनाती है।
क्योकि एक दिन में पांच बार पढ़ी जाने वाली नमाज़ में कुल 48 'रकत' (नमाज़ का पूरा चक्र) हैं जिनमें से 17 'फर्ज़' हैं और हर रकत में 7 प्रक्रियाएं (मुद्राएं) होती हैं एक नमाज़ी 17 अनिवार्य रकत करता है तो माना जाता है कि वह एक दिन में करीब 50 मिनट में 119 मुद्राएं करता है जिंदगी में यदि कोई व्यक्ति पाबंदी के साथ नमाज अदा करता है, तो बीमारी से वह दूर रहेगा।
नमाज की पहली प्रक्रिया में सीधे खड़े होना, जिसके जरिए रीढ़ की हड्डी सीधी रहे. इसके जरिए कमर की दिक्कत नहीं होती. इसके अलावा कंधे को कंधा मिलाकर रखते हैं और शरीर के वजन को अपने दोनों पैरों पर डालते हैं इसके बाद 'रुकू' जिसमें आप पैरों को सीधी रखकर कमर से अपने शरीर को झुकाना होता है इसके जरिए पैरों को घुटने को फायदा और पेट की कसरत होती है।
नमाज के दौरान सजदा (जब कोई दंडवत झुकता है और माथा और नाक ज़मीन को छूता है) करते हैं इस प्रक्रिया का फायदा ये है कि इससे शरीर और दिमाग रिलेक्स होता है क्योंकि शरीर का वजन दोनों पैरों पर पड़ता है और रीढ़ की हड्डी सीधी होती है सांसें प्राकृतिक रूप से आती हैं, व्यक्ति मजबूत महसूस करता है और विचारों पर पूरी तरह नियंत्रण होता है।
'सजदा' पर आंखें गड़ाने से एकाग्रता बढ़ती है गर्दन के झुकने पर गर्दन की मुख्य धमनियों पर स्थित कैरोटिड साइनस पर दबाव पड़ता है. गले में हलचल होने से थाइराइड का कार्यप्रणाली सुचारु होती है और पाचन तंत्र नियमित होता है. यह सब 40 सेकंड की मुद्रा में होता है मांसपेशियों को ताकत मिलती है, दूसरी मुद्रा में नमाज़ी हथेलियों को घुटनों पर टिकाते हुए और पैरों को सीधा करते हुए झुकता है और शरीर कमर से सीधे एंगल 90° पर झुकता है यह आसन "पश्चिमोत्तानासन" के समान है जिसमें शरीर के ऊपरी हिस्से में खून पहुंचता है, रीढ़ की हड्डी लचीली होती है और रीढ़ की हड्डी की मांसपेशियों को पोषण मिलता है घुटनों व पिंडली की मांसपेशियों की टोनिंग होती है इससे कब्ज में भी आराम मिलता है यह मुद्रा करीब 12 सेकंड तक की जाती है।
रक्त शुद्धि के लिए तीसरी मुद्रा में व्यक्ति सिर को उठाकर खड़ा होता है. इससे जो शुद्ध रक्त शरीर के ऊपरी भाग में गया था वो वापस लौटता है. यह 6 सेकंड की मुद्रा है अगली मुद्रा में नीचे टिकना होता है, घुटने पर टिकना और माथा ज़मीन पर इस प्रकार से टिकाना होता है कि शरीर के सभी 7 भाग ज़मीन पर टिकें, अपने घुटनों और हाथों को ज़मीन पर टिकाते हुए पहले नाक को छूते हैं, फिर माथे को और फिर बाद में घुटने के जोड़ों को छूते हुये एक सीधा एंगल बनाते हैं और गर्दन पर दबाव डालते हैं। नमाज की ये प्रक्रियाएं शारीरिक फायदे के लिए अहम है।
आज विश्व योग दिवस है हर साल पूरी दुनिया 21 जून को विश्व योग दिवस मनाती है योग को दुनियाभर में चर्चित भारत ने ही किया है साल 2015 में ही विश्व योग दिवस की शुरूआत हो गई थी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र को योग से 11 दिसंबर 2014 को अवगत कराया था इसी समय विश्वभर में योग को पहचान दिलाने को लेकर भारत की तरफ से कवायद तेज कर दी गई थी अंत में जाकर संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों के सदस्यों ने योग दिवस मनाने को लेकर प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। आज पूरा विश्व योग दिवस मना रहा है।
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